This is the first E-MAGAZINE for vijayvargiya samaj.Here WE publish the news of vijayvargiya samaj. Information related to samaj and ramshnehi sampardhay. If you have anything related to samaj mail us at vijayvargiyaclub.tonk@gmail.com Contact for advertisement arpit vijay vergiya @9001069719.

Saturday, 15 November 2014

- : मन उपदेश : - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

with 1 comment
- : मन उपदेश : - 
सन्तदास मन विकल है, अटक न माने काय ॥
बुरा भला देखे नहीं, जहाँ तहाँ चल जाय ॥१॥
बपड़ा तन को सन्तदास, फिरे उड़ाया मन्न ॥
जो या मन को बस करे, सो कोइ साधु जन्न ॥२॥
मन हस्ती महमन्त है, बहता है मंदमंत ॥
अंकुश दे गुरु शब्द का, फेरत है कोइ संत ॥३॥
मन चंचल था सन्तदास, मिलिया निश्चल माहिं ॥
चंचल से निश्चल भया, अब कहूँ चलता नाहिं ॥४॥
 
कोइ कोटि साधन करो, ल्यो काशी में तेग ॥
राम भजन बिन सन्तदास, मिटे न मनका वेग ॥५॥
तन कूँ धोया क्या हुआ, जो मन कूँ धोया नाहिं ॥
तन कूँ धोया बाहरा, मैल रह्या मन माहिं ॥६॥
मन की लहरया सन्तदास, ताकी लार न जाय ॥
सतगुरु का उपदेश सूँ , ता बिच रहे समाय ॥७॥
अगल बगल कूं सन्तदास, भटकत है बेकाम ॥
मिलिया चाहो मुक्तिकूँ, तो निशिदिन कहिये राम ॥८॥
क्या होता है सन्तदास, बहुता किया उपाय ॥
राम नाम सूं मन मिले, जीव बुद्धि तब जाय ॥९॥
मन लागा रहे रामसूं , तो भावै जहाँ रहो तन्न ॥
ऐसी रहणी सन्तदास, रहता है कोइ जन्न ॥१०॥ 
राम नाम कूँ छाँड के, पढ़ि है वेद पुराण ॥
जिना न पाया सन्तदास, निर्भय पद निर्वाण ॥११॥
गरक रहो गुरु ज्ञान में, राम नाम रस पीव ॥
फिर न कहावे सन्तदास, चौरासी का जीव ॥१२॥
 

आरती - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

with 0 Comment

आरती - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

आरती
ऐसी आरति करो मेरे मन्ना । राम न विसरूं एक ही छिन्ना ॥टेर॥
देही देवल मुख दरवाजा । बणिया अगम त्रिकूटी छाजा ॥१॥
सतगुरू जी की मैं बलिजाई । निशिदिन जिह्वा अखण्ड लवलाई ॥२॥
द्वितीय ध्यान हिरदय भया बासा । परमसुख जहाँ होय प्रकाशा ॥३॥
तृतीय ध्यान नाभि मध जाई । सन्मुख भया सेवक जहाँ साँई ॥४॥
अब जाय पहुँच्या चौथी धामा । सब साधुन का सरिया कामा ॥५॥
अनहद नाद झालर झुणकारा । परम ज्योति जहँ होय उजियारा ॥६॥
कोय कोय सन्त जुगति यह जाणी । जन संतदास मुक्ति भये प्राणी ॥७॥

पद १ - राग आसा - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

with 0 Comment

पद १ - राग आसा - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

पद १ - राग आसा


संतो संतन का घर न्यारा ॥
जिस घट भीतर अमी झरत है - एक अखंडित धारा ॥टेर॥
जहाँ धर नहीं अंबर दिवस नहीं रजनी - चंद सुरज नहीं तारा ॥
जहां नहिं वेद पवन नहीं पाणी - जहाँ न यो संसारा ॥१॥
जहाँ काम न क्रोध मरे नहीं जामै - नहीं काल का सारा ॥
जत सत तपस्या सोभी नाहीं - नहीं कोई आचारा ॥२॥
सुर तैतीसूं  सो भी नाहीं - नहीं दशू अवतारा ॥
संतदास दीसत उस घर में - संतों के सिरजणहारा ॥३॥

Saturday, 4 October 2014

हिंगलाज माता मंदिर

with 0 Comment

अनोखी मिसाल: ये है एक मात्र माता मंदिर जहां मुस्लिम भी करते हैं सजदा.......
.
कहते हैं हिंदू गंगाजल में स्नान करें या मद्रास के मंदिरों में जप करें, वह अयोध्या जाए या उत्तरी भारत के मंदिरों में जाकर पूजा-आर्चना करें। यदि उसने हिंगलाज की यात्रा नहीं की तो उनकी तीर्थों की यात्रा अधूरी है। हिंगलाज में हर साल मार्च में हजारों हिंदू पहुंचते हैं और तीन दिनों तक जप करते हैं। माता का एक शक्तिपीठ जिसकी पूजा मुसलमान भी करते हैं यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में स्थित है। 
.
मुसलमान देवी हिंगलाज को नानी का मंदिर और नानी का हज भी कहते हैं। इस स्थान पर आकर हिंदू और मुसलमान का भेद भाव मिट जाता है। दोनों ही भक्ति पूर्वक माता की पूजा करते हैं। यहां पास में ही हिंगला नदी प्रवाहित होती है। माता का यह मंदिर हिंगलाज देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के चक्र से कटकर यहां पर देवी सती का सिर गिरा था। इसलिए यह स्थान चमत्कारी और दिव्य माना जाता है। 
.
कैसी है यात्रा :
.
हिंगलाज माता मंदिर जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा जरूरी है। हिंगलाज की यात्रा कराची से प्रारंभ होती है। कराची से लगभग 10 किलोमीटर दूर हॉव नदी है। मुख्य यात्रा वहीं से शुरू होती है। हिंगलाज जाने के पहले लासबेला में माता की मूर्ति का दर्शन करने होते हैं। यह दर्शन छड़ी वाले पुरोहित कराते हैं। वहां से शिवकुण्ड (चंद्रकूप) जाते हैं, जहां अपने पाप की घोषणा कर नारियल चढ़ाते हैं। जिनकी पाप मुक्ति हो गई और दरबार की आज्ञा मिल गई। उनका नारियल और भेंट स्वीकार हो जाती है।
.
चंद्रकूप- हिंगुलाज को आग्नेय शक्तिपीठ तीर्थ भी कहते हैं, क्योंकि वहां जाने से पहले अग्नि उगलते चंद्रकूप पर यात्री को जोर-जोर से अपने गुप्त पापों का विवरण देना पड़ता है। साथ ही, भविष्य में उन पापों को न दोहराने का वचन भी देना पड़ता है। जो अपने पाप छिपाते हैं, उन्हें आज्ञा नहीं मिलती और उन्हें वहीं छोड़कर अन्य यात्री आगे बढ़ जाते हैं। इसके बाद चंद्रकूप दरबार की आज्ञा मिलती है। चंद्रकूप तीर्थ पहाडिय़ों के बीच में धूम्र उगलता एक ऊंचा पहाड़ है। वहां विशाल बुलबुले उठते रहते हैं। आग तो नहीं दिखती, लेेकिन अंदर से यह खौलता, भाप उगलता ज्वालामुखी है।
.
तिम पड़ाव-मां की गुफा के अंतिम पड़ाव पर पहुंच कर यात्री विश्राम करते हैं। अगले दिन सूर्योदय से पूर्व अघोर नदी में स्नान करके पूजन सामग्री लेकर दर्शन हेतु जाते हैं। नदी के पार पहाड़ी पर मां की गुफा है। गुफा के पास ही अतिमानवीय शिल्प-कौशल का नमूना माता हिंगलाज का महल है, जो यज्ञों द्वारा निर्मित माना जाता है। एक नितांत रहस्यमय नगर जो प्रतीत होता है, मानों पहाड़ को पिघलाकर बनाया गया हो।
.
हवा नहीं, प्रकाश नही, लेकिन रंगीन पत्थर लटकते हैं। वहां के फर्श भी रंग-बिरंगे हैं। दो पहाडिय़ों के बीच रेतीली पगडंडी। कहीं खजूर के वृक्ष, तो कही झाड़ियों के बीच पानी का सोता। उसके पार ही है मां की गुफा। कुछ सीढ़ियां चढ़कर, गुफा का द्वार आता है। इस विशालकाय गुफा के अंतिम छोर पर वेदी पर दिया जलता रहता है। यहां कोई मूर्ति नहीं है हां पिण्डी जरूर हैं। मां की गुफा के बाहर विशाल शिलाखण्ड पर, सूर्य-चन्द्रमा की आकृतियां अंकित हैं। कहते हैं कि इन आकृतियों को राम ने यहां यज्ञ के बाद खुद अंकित किया था।
.
ज्योति के दर्शन :
.
माता हिंगलाज माता वैष्णों की तरह एक गुफा में विराजमान हैं। इस शक्तिपीठ में ज्योति के दर्शन होते हैं। गुफा में हाथ व पैरों के बल जाना होता है। 
.
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं- हिंगलाज देवी शक्तिपीठ के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो एक बार माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है। उसे पूर्वजन्म के कर्मों का दंड नहीं भुगतना पड़ता है। मान्यता है कि परशुराम जी द्वारा 21 बार क्षत्रियों का अंत किए जाने पर बचे हुए क्षत्रियों ने माता हिंगलाज से प्राण रक्षा की प्रार्थना की। माता ने क्षत्रियों को ब्रह्मक्षत्रिय बना दिया। इससे परशुराम से उन्हें अभय दान मिल गया।
.
एक मान्यता यह भी है कि रावण के वध के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने भी हिंगलाज देवी की यात्रा की थी। भगवान राम ने यहां पर एक यज्ञ भी किया था।



also see:- tanot mata mandir








post credits:-Kusum Vijaywargiya

W/O Shri Umesh Vijaywargiya

Address C/O Madanlal Mahadev Prasad Attar
.                   Ganesh Bazar, Gwalior


















Friday, 3 October 2014

अथ पद लिख्यते - स्वामी जी श्री रामचरणजी की अनुभव वाणी

with 0 Comment
स्वामी जी श्री रामचरणजी की अनुभव वाणी

अथ पद लिख्यते

(१)

बाबा सतगुरू की बलिहारी, मोहजाल सुलझाई आंटी काटी बिपति हमारी ।। टेर ।।
शरणे राख करी प्रतिपाला , दीरघ दीन दयाला
राम नामसूं लगन लगाई, भान्या भर्म जंजाला । । १ । ।
काछ बाछ का कलंक मिटाया, सांच शील पिछणाया ।
स्वाद श्रृंगार न व्यापै माया, निज निर्वेद धराया । । २ । ।
रामचरण जन राम स्वरूपा, भक्ति हेत भू आया ।
किरपा करिकै ज्ञान प्रकाश्या , श्रवण द्वार सुणाया । । ३। ।


(२)

अब मैं सतगुरू शब्द पिछाण्या । भागी भूल भया मन चेतन, घरही गोविन्द जाण्या ।। टेर ।।
दशूं दिशा से उलट अफूटी सुरति निरंतर लागी । राम राम रटि भाव बधाया, दूजी भावट भागी । । १ । ।
कोई ध्यावे पीर पैगम्बर, कोई दशूं अवतारा । हमतो सकल एक करि देख्या, अक्षर दोय मंझारा । । २ । ।
सारी सृष्टि रची करता की, कर्ता सबके मांही । ये हम ज्ञान लह्या गुरू गमसै, घटबध दीशै नांही । । ३ । ।
ऐसी दृष्टि रहै मन नहचल कबहूँ भर्मै नांही । रामचरण तिरपति घर पाया आप आपके मांही ।।४।।

also read:-
ram-raksha-mantra

Thursday, 2 October 2014

vijayvargiya बोरा गोत्र कुलदेवी माता मंदिर टोंक

with 0 Comment
vijayvargiya बोरा  गोत्र कुलदेवी माता मंदिर टोंक
निर्माणाधीन फोटो









Wednesday, 1 October 2014

विजयवर्गीय वैश्य मंडल द्वारा वार्सिकोतसव एवम प्रतिभा सम्मान समारोह

with 0 Comment
विजयवर्गीय वैश्य मंडल दिल्ली द्वारा वार्सिकोतसव एवम प्रतिभा सम्मान समारोह



Tuesday, 30 September 2014

श्री रामस्नेही परंपरा में चातुर्मास का महत्व

with 0 Comment
श्री रामस्नेही परंपरा में चातुर्मास का बहुत महत्व हैं।
 हर वर्ष की भाति वर्ष ३ अक्टूबर को पूर्ण हो रहा हैं। ये परंपरा क्यों ओर किस ने प्रारंभ की और क्यों की।
इस परंपरा को श्री १००८ श्री रामचरण जी महाराज ने प्रारंभ की और इसका महत्व इसप्रकार हैं।
चातुर्मास की मर्यादा के लिए आदेश :-
स्वामी रामचरण महाराज ,दिवस इक ऐसी कीनी।
सब सन्तन कूं आय  , उठ परिक्रमा  दीनी।।
सन्तन कीनी अर्ज ,कहा यह करो दयला ।
रामजन्न जी  कही  ,धर्म की बॉधे पाला ।।
तब  स्वामी  जी श्री मुख सूं गिरा उचारी येह।
दशरावा पहली रमे , मम रसना पग देह ।।
सुगरा सो ही जाणिये, समझे गुरु की सैन।
रामचरण नुगरा सोही , लखे न गुरु का बैन।।
रामचरण  सुगरा सर्प , मंत्रपर वश होय ।
गुरु आज्ञा माने नहीं , सो नर नुगरा जोय ।।
इसप्रकार श्री महाराज ने अपने शिष्यों को चातुर्मास का महत्व बताया । उसके बाद से आज तक यह परंपरा चालू हैं ।यह परंपरना आचार्य श्री व सन्तो पर लागू होती हैं।
   ।।  राम  जी राम  राम  महाराज ।।


post credits:-
Hemendra vijayvargiya

Tuesday, 23 September 2014

राम रक्षा मन्त्र - यह मंत्र स्वामी जी श्री भगवानदासजी ने रचा है

with 0 Comment

राम रक्षा मन्त्र - यह मंत्र स्वामी जी श्री भगवानदासजी ने रचा है।

राम रक्षा मन्त्र


जो नर राम नाम लिव लावे,
जाकू कोई भय नहीं व्यापे विघ्न विले होई जावे॥ 

अगल बगल का छांड पसारा, मन विश्वास उपावे ।
सर्वज्ञ साईं एक ही जाने, जो निर्भय गुण गावे ।
राहु केतु अरु प्रेत शनिश्चर, मंगल नाही दुखावे ।
सूरज सोम गुरु अरु बुध ही, शुक्र निकट नहीं आवे ।
भैरू बीर बिजासण डाकण, नरसींग दूर रहावे ।
दिशा शूल अरु भद्रा जाणु, सूंण कसूण बिलावे ।
मुष्ट दृष्टि अरु मोत अकाली, यम भी शीश नमावे ।
सबले शरणे निर्भयवासा, भगवानदास जन गावे ।

Sunday, 21 September 2014

सैनिकों की अटूट आस्था का प्रतीक- तनोट की आवड़ माता

with 0 Comment
सैनिकों की अटूट आस्था का प्रतीक- तनोट की आवड़ माता.....





.
जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर स्थित माता तनोट राय (आवड़ माता) का मंदिर है. तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है. हिंगलाज माता शक्तिपीठ
वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है.
.
इतिहास.........
.
मंदिर के वर्तमान पुजारी सीसुब में हेड काँस्टेबल कमलेश्वर मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया कि बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की. एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें.
.
माता कि कृपा से चारण के यहाँ सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया.उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया. सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी. उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की.
.
माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया. राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया. विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की.
.
भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था. उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था. भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे. कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु मंदिर तनोट में ही रहा.
.
विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र सिद्ध देवराज, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ. इतना कहकर सभी बहनों ने पश्चिम में हिंगलाज माता की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं. पहले माता की पूजा साकल दीपी ब्राह्मण किया करते थे.
.
तनोट माता का यह मंदिर यहाँ के स्थानीय निवासियों का एक पूज्यनीय स्थान हमेशा से रहा परंतु 1965 को भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र बन गई.
,
सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ. तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु (पाक) पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर चुका था. तनोट तीन दिशाओं से घिरा हुआ था. यदि शत्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था. अत: तनोट पर अधिकार जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था.
.
17 से 19 नवंबर 1965 को शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया. दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे. तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियाँ दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी. शत्रु ने जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी के मंदिर के समीप एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था.
.
दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए.अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई.सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया. दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई.
.
कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी.सैनिकों की तनोट की इस शानदार विजय को देश के तमाम अखबारों ने अपनी हेडलाइन बनाया.
.
सैनिकों की अटूट आस्था...
.
एक बार फिर 4 दिसम्बर 1971 की रात को पंजाब रेजीमेंट की एक कंपनी और सीसुब की एक कंपनी ने माँ के आशीर्वाद से लोंगेवाला में विश्व की महानतम लड़ाइयों में से एक में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजीमेंट को धूल चटा दी थी.लोंगेवाला को पाकिस्तान टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था.
.
1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है. 1965 से माता की पूजा सीसुब द्वारा नियुक्त पुजारी करता है. मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे.
.
सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है. लोंगेवाला विजय के बाद माता तनोट राय के परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया, जहाँ हर वर्ष 16 दिसम्बर को महान सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है.
.
हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. अपनी दिनोंदिन बढ़ती प्रसिद्धि के कारण तनोट एक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध होता जा रहा है.

काँस्टेबल कालिकांत सिन्हा जो तनोट चौकी पर पिछले चार साल से पदस्थ हैं कहते हैं कि माता बहुत शक्तिशाली है और मेरी हर मनोकामना पूर्ण करती है. हमारे सिर पर हमेशा माता की कृपा बनी रहती है.दुश्मन हमारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता है.

.
 || जय माता दी ||     || जय माता दी ||     || जय माता दी ||     || जय माता दी ||
 
post by:-
Name Kusum Vijaywargiya

W/O Shri Umesh Vijaywargiya

Address C/O Madanlal Mahadev Prasad Attar
.                   Ganesh Bazar, Gwalior

 

Monday, 15 September 2014

संतदासजी महाराज की अनुभव वाणी - पद 1

with 0 Comment

संतदासजी महाराज की अनुभव वाणी - पद १ 

संतों सतगुरु भेद बताया , ताते राम निकट ही पाया।
तप तीरथ कबहु नहीं कीन्हा, पढ्या न वेद पुराणा ।
जत सत दोउ अजब कहत हैं , सो स्वपने नहीं जाण्या ।
मूनी रह्या न दूधाहारी , मकर मास नहीं न्हाया ।
सुर तैंतीसू एक राम बिन , सो कबहु नहीं ध्याया ।
काशी गया न करवत लीन्ही , न गल्या हिंवाला माहीं । 
जंत्र मन्त्र अरु नाटक चेटक , सो भी सीख्या नाही ।
संजम किया न रैन नहीं जाग्या , करी न सेवा पूजा । 
न कुछ गाया न कुछ बजाया , भरम न जाण्या दूजा । 
राम नाम का अखंड ध्यान धर , अंतर प्रेम जगाया ।
संतदस चढ़ि शून्य शिखर पर , इस विधि अलख लखाया ।

Friday, 12 September 2014

स्वामी विवेकानन्द - एक दूरद्रष्ट्रा

with 0 Comment
क्या आपक जानते है .



SWAMI VIVEKANAND


आज से 121 वर्ष पूर्व 11 सितम्बर 1893 में स्वामी विववेकानंद ने शिकागो में आज ही के दिन विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत " मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनो " के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

उनके कुछ अविस्मरणीय विचार यहां हैं :

सफलता के तीन आवश्यक अंग हैं-शुद्धता,धैर्य और दृढ़ता। लेकिन, इन सबसे बढ़कर जो आवश्यक है वह है प्रेम।

मैं सिर्फ और सिर्फ प्रेम की शिक्षा देता हूं और मेरी सारी शिक्षा वेदों के उन महान सत्यों पर आधारित है जो हमें समानता और आत्मा की सर्वत्रता का ज्ञान देती है।

शक्ति की वजह से ही हम जीवन में ज्यादा पाने की चेष्टा करते हैं। इसी की वजह से हम पाप कर बैठते हैं और दुख को आमंत्रित करते हैं। पाप और दुख का कारण कमजोरी होता है। कमजोरी से अज्ञानता आती है और अज्ञानता से दुख।

हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र निर्माण हो। मानसिक शक्ति का विकास हो। ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं।

खुद को समझाएं, दूसरों को समझाएं। सोई हुई आत्मा को आवाज दें और देखें कि यह कैसे जागृत होती है। सोई हुई आत्मा के का जागृत होने पर ताकत, उन्नति, अच्छाई, सब कुछ आ जाएगा।

अगर आपको तैतीस करोड़ देवी-देवताओं पर भरोसा है लेकिन खुद पर नहीं तो आप को मुक्ति नहीं मिल सकती। खुद पर भरोसा रखें, अडिग रहें और मजबूत बनें। हमें इसकी ही जरूरत है।

मेरे आदर्श को सिर्फ इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता हैः मानव जाति देवत्व की सीख का इस्तेमाल अपने जीवन में हर कदम पर करे।







POST CREDITS GOES TO:-


Name Kusum Vijaywargiya

W/O Shri Umesh Vijaywargiya

Address C/O Madanlal Mahadev Prasad Attar
.                   Ganesh Bazar, Gwalior



Tuesday, 9 September 2014

पितृ पक्ष

with 0 Comment

पितृ पक्ष 8 सितंबर की दोपहर से 23 सितंबर तक............ 
सोमवार, 8 सितंबर की दोपहर से पूर्णिमा तिथि लग गई है और श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो गये है सोमवार, 23 सितंबर (अमावस्या) को यह पक्ष समाप्त होगा। इन तिथियों के संबंध में पंचांग भेद हो सकते हैं।  श्राद्ध पक्ष में पितर देवताओं के लिए विशेष धूप-ध्यान किया जाता है। इन दिनों खीर-पुड़ी बनाई जाती है, ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है और कंडे (उपले) जलाकर उस पर पितरों के लिए धूप अर्पित किया जाता है।  

श्रद्धा होना जरूरी है : - 

शास्त्रों में पितरों को देवताओं से भी उच्च कोटि का स्थान दिया गया है। उन्हें भूख नहीं लगती। केवल भूख की इच्छा होती है। अत: पितरों की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही श्राद्ध किया जाता है। इसलिए श्रद्धा होना जरूरी है। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होकर आयु, संतान, धन, स्वर्ग, मोक्ष प्रदान करते हैं।  

पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व : - 

पितरों के प्रति श्रद्धा जाहिर करना एक तरह से उनके द्वारा हमारे लिए किए गए उपकारों का आभार व्यक्त करना है। श्राद्ध का समापन सर्वपितृ अमावस्या पर होता है। पितृ दोष, पितृ ऋण से मुक्ति और पितरों की शांति के लिए तर्पण, ब्रह्म भोज दान-दक्षिणा का विधान किया गया है। पुराणों की मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर परिजनों के द्वार पर तर्पण की कामना से आते हैं।  

पितरों की कृपा के बिना नहीं मिलती है लक्ष्मी कृपा..........  

शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए विशेष पूजन किया जाना चाहिए। यदि आपके पितृ देवता प्रसन्न नहीं होंगे तो आपको महालक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त नहीं हो सकती है। पितरों की कृपा के बिना कड़ी मेहनत के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है और कार्यों में बाधाएं बढ़ जाती हैं। पितरों को तृप्त करने पर हमें सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं और सभी बिगड़े कार्य बन जाते हैं।  

श्राद्ध पक्ष 23 सितंबर तक, आप कर सकते हैं ये चार उपाय  

पहला उपाय : -  

श्राद्ध पक्ष में पूर्णिमा, अमावस्या या अपने पितरों की तिथि पर दोपहर बारह बजे यह उपाय करें। उपाय के अनुसार सबसे पहले मुख्य दरवाजे के बाहर साफ-सफाई करें। पूजन की थाली सजाएं। थाली में पूजन सामग्री के साथ ही गुड़ और घी भी विशेष रूप से रखें। इसके बाद दरवाजे के दोनों ओर एक-एक बड़ा दीपक रखें। उसमें गाय के गोबर से बने कंडें जलाएं, दोनों दीपों का पूजन करें। पूजन के बाद पितर देवताओं को याद करें और दोनों दीपों में सुलगते हुए कंडों पर गुड़-घी एक साथ मिलाकर पांच बार डाल दें। इससे पितृ तृप्त होते हैं। ध्यान रखें धूप देने से पहले कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाना चाहिए। इस उपाय से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इस दौरान पितृ देवताओं के मंत्रों का जप भी किया जा सकता है।  

रोगों से मुक्ति के लिए पूर्णिमा और अमावस्या पर करें हनुमानजी का ये उपाय : -  

पूर्णिमा और अमावस्या के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं। जो व्यक्ति रोगी है, उसके कपड़े से थोड़ा सा धागा निकालकर रूई के साथ उसकी बत्ती बनाएं। एक मिट्टी का दीपक लें और उसमें घी भरें, रूई और धागे की बत्ती भी लगाएं। यह दीपक हनुमानजी के मंदिर में जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय से रोगी जल्दी ही ठीक हो सकता है। यह उपाय मंगलवार और शनिवार को भी नियमित रूप से किया जाना चाहिए।  

ध्यान रखें, इस उपाय के साथ डॉक्टर्स द्वारा दिए जा रहे परामर्श का भी पालन करें। दवाइयां समय पर लेते रहें और स्वास्थ्य संबंधी सावधानी रखें।  

पीपल के पास करें ये उपाय : -  

यदि आप धन संबंधी परेशानियों को दूर करना चाहते हैं तो श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा और अमावस्या पर यह उपाय करें। उपाय के अनुसार आप किसी पीपल के वृक्ष के समीप जाएं और अपने साथ जनेऊ और संपूर्ण पूजन सामग्री लेकर जाएं। पीपल की पूजा करें और जनेऊ अर्पित करें। साथ ही, भगवान श्रीहरि के मंत्रों का जप करें या भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके बाद पीपल की परिक्रमा करते हुए ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। इस उपाय से पितर देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं : -  

यदि आपसे संभव हो सके तो आप किसी ऐसे सरोवर या किसी ऐसे स्थान पर जाएं, जहां मछलियां हों। वहां जाते समय अपने साथ गेहूं के आटे की गोलियां बनाकर ले जाएं। सरोवर में मछलियों को आटे की गोलियां डालें। यह उपाय भी आपको पितर देवताओं के साथ ही अन्य देवी-देवताओं की कृपा दिलाएगा। यह उपाय श्राद्ध पक्ष में विशेष पुण्य दिलवाता है, लेकिन यह उपाय समय-समय पर हमेशा करते रहना चाहिए।  

post credits:-- 

  Kusum Vijaywargiya

W/O Shri Umesh Vijaywargiya

Address C/O Madanlal Mahadev Prasad Attar
.                   Ganesh Bazar, Gwalior
 E-Mail : vijaywargiyakusum@gmail.com



Advertisement

Powered by Blogger.

Blog Archive