रामस्नेही गुरु मंत्रराम नाम तारक मंत्र, सुमिरे शंकर शेष,रामचरण सांचा गुरु, देवे यो उपदेश । सतगुरु बक्षे राम नाम, शिष्य धरे विश्वास, रामचरण निसदिन रटे, तो निश्चय होसी प्रकाश । |
राग आसासंतो संतन का घर न्यारा ॥जहाँ धर नहीं अंबर दिवस नहीं रजनी - चंद सुरज नहीं तारा ॥ जहां नहिं वेद पवन नहीं पाणी - जहाँ न यो संसारा ॥१॥ जहाँ काम न क्रोध मरे नहीं जामै - नहीं काल का सारा ॥ जत सत तपस्या सोभी नाहीं - नहीं कोई आचारा ॥२॥ सुर तैतीसूं सो भी नाहीं - नहीं दशू अवतारा ॥ संतदास दीसत उस घर में - संतों के सिरजणहारा ॥३॥ |
स्वामी जी श्री रामचरणजी की अनुभव वाणीबाबा सतगुरू की बलिहारी, मोहजाल सुलझाई आंटी काटी बिपति हमारी ।। टेर ।।शरणे राख करी प्रतिपाला , दीरघ दीन दयाला राम नामसूं लगन लगाई, भान्या भर्म जंजाला । । १ । । काछ बाछ का कलंक मिटाया, सांच शील पिछणाया । स्वाद श्रृंगार न व्यापै माया, निज निर्वेद धराया । । २ । । रामचरण जन राम स्वरूपा, भक्ति हेत भू आया । किरपा करिकै ज्ञान प्रकाश्या , श्रवण द्वार सुणाया । । ३। । अब मैं सतगुरू शब्द पिछाण्या । भागी भूल भया मन चेतन, घरही गोविन्द जाण्या ।। टेर ।। दशूं दिशा से उलट अफूटी सुरति निरंतर लागी । राम राम रटि भाव बधाया, दूजी भावट भागी । । १ । । कोई ध्यावे पीर पैगम्बर, कोई दशूं अवतारा । हमतो सकल एक करि देख्या, अक्षर दोय मंझारा । । २ । । सारी सृष्टि रची करता की, कर्ता सबके मांही । ये हम ज्ञान लह्या गुरू गमसै, घटबध दीशै नांही । । ३ । । ऐसी दृष्टि रहै मन नहचल कबहूँ भर्मै नांही । रामचरण तिरपति घर पाया आप आपके मांही ।।४।। |
स्वामी जी श्री रामचरण जी महाराज की अनुभव वाणी - गुरुदेव को अंगआप हो गुरुदेव दिनपति अगम ज्ञान प्रकाश है।उर नयन के तुम देव वायक अज्ञता तिम नाश है ॥ यथा निज पद पाइयो हम आप किरपा पूर हैं । नमो जी रिछपाल सतगुरु काल कंटक दूर हैं ॥ संग सतगुरु देव जी को महा भागी पाय हैं । भर्म कर्म अरु शर्म संशय शोक सारो जाय है ॥ गुरु नित गुणकार परगट दीन के दयाल हैं रामचरण चित चरण लीन्हो कियो है मोहि निहाल है॥ |
स्वामी जी श्री रामचरण जी महाराज द्वारा लिखित - रमते राम की आरतिआरति रमता राम तुम्हारी, तुम सूँ लागी सुरती हमारी ।।टेर ।।रमता राम सकल भरपूरा , सूक्ष्म स्थूल तुम्हारा नूरा ।।1।। आरति सुमिरन सेवा कीजे , सब निर्दोष ज्ञान गह लीजे ।।2।। ये ही आरति ये ही पूजा , राम बिना दर्शे नहीं दूजा ।।3।। शिव सनकादिक शेष पुकारे , यह आरति भवसागर तारे ।।4।। रामचरण ऐसी आरति जाके , अष्ट सिद्धि नव निधि चेरी जाके ।।5।। |
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Thursday, 4 September 2014
रामस्नेही गुरु मंत्र
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