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Thursday, 4 September 2014

रामस्नेही गुरु मंत्र

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रामस्नेही गुरु मंत्र

राम नाम तारक मंत्र, सुमिरे शंकर शेष,
रामचरण सांचा गुरु, देवे यो उपदेश ।
सतगुरु बक्षे राम नाम, शिष्य धरे विश्वास,
रामचरण निसदिन रटे, तो निश्चय होसी प्रकाश ।

राग आसा

संतो संतन का घर न्यारा ॥
जहाँ धर नहीं अंबर दिवस नहीं रजनी - चंद सुरज नहीं तारा ॥
जहां नहिं वेद पवन नहीं पाणी - जहाँ न यो संसारा ॥१॥
जहाँ काम न क्रोध मरे नहीं जामै - नहीं काल का सारा ॥
जत सत तपस्या सोभी नाहीं - नहीं कोई आचारा ॥२॥
सुर तैतीसूं सो भी नाहीं - नहीं दशू अवतारा ॥
संतदास दीसत उस घर में - संतों के सिरजणहारा ॥३॥

स्वामी जी श्री रामचरणजी की अनुभव वाणी

बाबा सतगुरू की बलिहारी, मोहजाल सुलझाई आंटी काटी बिपति हमारी ।। टेर ।।
शरणे राख करी प्रतिपाला , दीरघ दीन दयाला
राम नामसूं लगन लगाई, भान्या भर्म जंजाला । । १ । ।
काछ बाछ का कलंक मिटाया, सांच शील पिछणाया ।
स्वाद श्रृंगार न व्यापै माया, निज निर्वेद धराया । । २ । ।
रामचरण जन राम स्वरूपा, भक्ति हेत भू आया ।
किरपा करिकै ज्ञान प्रकाश्या , श्रवण द्वार सुणाया । । ३। ।
अब मैं सतगुरू शब्द पिछाण्या । भागी भूल भया मन चेतन, घरही गोविन्द जाण्या ।। टेर ।।
दशूं दिशा से उलट अफूटी सुरति निरंतर लागी । राम राम रटि भाव बधाया, दूजी भावट भागी । । १ । ।
कोई ध्यावे पीर पैगम्बर, कोई दशूं अवतारा । हमतो सकल एक करि देख्या, अक्षर दोय मंझारा । । २ । ।
सारी सृष्टि रची करता की, कर्ता सबके मांही । ये हम ज्ञान लह्या गुरू गमसै, घटबध दीशै नांही । । ३ । ।
ऐसी दृष्टि रहै मन नहचल कबहूँ भर्मै नांही । रामचरण तिरपति घर पाया आप आपके मांही ।।४।।

स्वामी जी श्री रामचरण जी महाराज की अनुभव वाणी - गुरुदेव को अंग

आप हो गुरुदेव दिनपति अगम ज्ञान प्रकाश है।
उर नयन के तुम देव वायक अज्ञता तिम नाश है ॥
यथा निज पद पाइयो हम आप किरपा पूर हैं ।
नमो जी रिछपाल सतगुरु काल कंटक दूर हैं ॥
संग सतगुरु देव जी को महा भागी पाय हैं ।
भर्म कर्म अरु शर्म संशय शोक सारो जाय है ॥
गुरु नित गुणकार परगट दीन के दयाल हैं
रामचरण चित चरण लीन्हो कियो है मोहि निहाल है॥

स्वामी जी श्री रामचरण जी महाराज द्वारा लिखित - रमते राम की आरति

आरति रमता राम तुम्हारी, तुम सूँ लागी सुरती हमारी ।।टेर ।।
रमता राम सकल भरपूरा , सूक्ष्म स्थूल तुम्हारा नूरा ।।1।।
आरति सुमिरन सेवा कीजे , सब निर्दोष ज्ञान गह लीजे ।।2।।
ये ही आरति ये ही पूजा , राम बिना दर्शे नहीं दूजा ।।3।।
शिव सनकादिक शेष पुकारे , यह आरति भवसागर तारे ।।4।।
रामचरण ऐसी आरति जाके , अष्ट सिद्धि नव निधि चेरी जाके ।।5।।

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