पद १ - राग आसा - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज
पद १ - राग आसा
संतो संतन का घर न्यारा ॥
जिस घट भीतर अमी झरत है - एक अखंडित धारा ॥टेर॥
जिस घट भीतर अमी झरत है - एक अखंडित धारा ॥टेर॥
जहाँ धर नहीं अंबर दिवस नहीं रजनी - चंद सुरज नहीं तारा ॥
जहां नहिं वेद पवन नहीं पाणी - जहाँ न यो संसारा ॥१॥
जहाँ काम न क्रोध मरे नहीं जामै - नहीं काल का सारा ॥
जत सत तपस्या सोभी नाहीं - नहीं कोई आचारा ॥२॥
सुर तैतीसूं सो भी नाहीं - नहीं दशू अवतारा ॥
संतदास दीसत उस घर में - संतों के सिरजणहारा ॥३॥
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