आरती - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज
आरती
ऐसी आरति करो मेरे मन्ना । राम न विसरूं एक ही छिन्ना ॥टेर॥
देही देवल मुख दरवाजा । बणिया अगम त्रिकूटी छाजा ॥१॥
सतगुरू जी की मैं बलिजाई । निशिदिन जिह्वा अखण्ड लवलाई ॥२॥
सतगुरू जी की मैं बलिजाई । निशिदिन जिह्वा अखण्ड लवलाई ॥२॥
द्वितीय ध्यान हिरदय भया बासा । परमसुख जहाँ होय प्रकाशा ॥३॥
तृतीय ध्यान नाभि मध जाई । सन्मुख भया सेवक जहाँ साँई ॥४॥
अब जाय पहुँच्या चौथी धामा । सब साधुन का सरिया कामा ॥५॥
अनहद नाद झालर झुणकारा । परम ज्योति जहँ होय उजियारा ॥६॥
कोय कोय सन्त जुगति यह जाणी । जन संतदास मुक्ति भये प्राणी ॥७॥
0 comments:
Post a Comment