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Tuesday, 30 September 2014

श्री रामस्नेही परंपरा में चातुर्मास का महत्व

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श्री रामस्नेही परंपरा में चातुर्मास का बहुत महत्व हैं।
 हर वर्ष की भाति वर्ष ३ अक्टूबर को पूर्ण हो रहा हैं। ये परंपरा क्यों ओर किस ने प्रारंभ की और क्यों की।
इस परंपरा को श्री १००८ श्री रामचरण जी महाराज ने प्रारंभ की और इसका महत्व इसप्रकार हैं।
चातुर्मास की मर्यादा के लिए आदेश :-
स्वामी रामचरण महाराज ,दिवस इक ऐसी कीनी।
सब सन्तन कूं आय  , उठ परिक्रमा  दीनी।।
सन्तन कीनी अर्ज ,कहा यह करो दयला ।
रामजन्न जी  कही  ,धर्म की बॉधे पाला ।।
तब  स्वामी  जी श्री मुख सूं गिरा उचारी येह।
दशरावा पहली रमे , मम रसना पग देह ।।
सुगरा सो ही जाणिये, समझे गुरु की सैन।
रामचरण नुगरा सोही , लखे न गुरु का बैन।।
रामचरण  सुगरा सर्प , मंत्रपर वश होय ।
गुरु आज्ञा माने नहीं , सो नर नुगरा जोय ।।
इसप्रकार श्री महाराज ने अपने शिष्यों को चातुर्मास का महत्व बताया । उसके बाद से आज तक यह परंपरा चालू हैं ।यह परंपरना आचार्य श्री व सन्तो पर लागू होती हैं।
   ।।  राम  जी राम  राम  महाराज ।।


post credits:-
Hemendra vijayvargiya

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