स्वामी जी श्री रामचरणजी की अनुभव वाणी
अथ पद लिख्यते
(१)
बाबा सतगुरू की बलिहारी, मोहजाल सुलझाई आंटी काटी बिपति हमारी ।। टेर ।।
शरणे राख करी प्रतिपाला , दीरघ दीन दयाला
राम नामसूं लगन लगाई, भान्या भर्म जंजाला । । १ । ।
काछ बाछ का कलंक मिटाया, सांच शील पिछणाया ।
स्वाद श्रृंगार न व्यापै माया, निज निर्वेद धराया । । २ । ।
रामचरण जन राम स्वरूपा, भक्ति हेत भू आया ।
किरपा करिकै ज्ञान प्रकाश्या , श्रवण द्वार सुणाया । । ३। ।
(२)
अब मैं सतगुरू शब्द पिछाण्या । भागी भूल भया मन चेतन, घरही गोविन्द जाण्या ।। टेर ।।
दशूं दिशा से उलट अफूटी सुरति निरंतर लागी । राम राम रटि भाव बधाया, दूजी भावट भागी । । १ । ।
कोई ध्यावे पीर पैगम्बर, कोई दशूं अवतारा । हमतो सकल एक करि देख्या, अक्षर दोय मंझारा । । २ । ।
सारी सृष्टि रची करता की, कर्ता सबके मांही । ये हम ज्ञान लह्या गुरू गमसै, घटबध दीशै नांही । । ३ । ।
ऐसी दृष्टि रहै मन नहचल कबहूँ भर्मै नांही । रामचरण तिरपति घर पाया आप आपके मांही ।।४।।
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(१)
बाबा सतगुरू की बलिहारी, मोहजाल सुलझाई आंटी काटी बिपति हमारी ।। टेर ।।
शरणे राख करी प्रतिपाला , दीरघ दीन दयाला
राम नामसूं लगन लगाई, भान्या भर्म जंजाला । । १ । ।
काछ बाछ का कलंक मिटाया, सांच शील पिछणाया ।
स्वाद श्रृंगार न व्यापै माया, निज निर्वेद धराया । । २ । ।
रामचरण जन राम स्वरूपा, भक्ति हेत भू आया ।
किरपा करिकै ज्ञान प्रकाश्या , श्रवण द्वार सुणाया । । ३। ।
(२)
अब मैं सतगुरू शब्द पिछाण्या । भागी भूल भया मन चेतन, घरही गोविन्द जाण्या ।। टेर ।।
दशूं दिशा से उलट अफूटी सुरति निरंतर लागी । राम राम रटि भाव बधाया, दूजी भावट भागी । । १ । ।
कोई ध्यावे पीर पैगम्बर, कोई दशूं अवतारा । हमतो सकल एक करि देख्या, अक्षर दोय मंझारा । । २ । ।
सारी सृष्टि रची करता की, कर्ता सबके मांही । ये हम ज्ञान लह्या गुरू गमसै, घटबध दीशै नांही । । ३ । ।
ऐसी दृष्टि रहै मन नहचल कबहूँ भर्मै नांही । रामचरण तिरपति घर पाया आप आपके मांही ।।४।।
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