हिंदू-मुस्लिम
एकता के प्रतीक बाबा रामदेव
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पाबू हड्बू रामदे , माँगाळिया मेहा | पांचू पीर पधारजौ , गोगाजी जेहा ||
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भारत की इस पवित्र धरती पर समय समय पर अनेक संतों,महात्माओं,वीरों व
सत्पुरुषों ने जन्म लिया है | युग की आवश्कतानुसार उन्होंने अपने
व्यक्तित्व और कृतित्व के बल से, दुखों से त्रस्त मानवता को दुखों से
मुक्ति दिला जीने की सही राह दिखाई | १५ वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में
लुट खसोट,छुआछुत,हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितिया बड़ी अराजक बनी
हुई थी | ऐसे विकट समय में पश्चिमी राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर
के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल
जी के घर भाद्रपद शुक्ला द्वितया वि.स. १४०९ को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए
जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार,वैर-द्वेष,छुआछुत का विरोध कर
अछुतोद्वार का सफल आन्दोलन चलाया |
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हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस
वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था |
सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की
पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम
भाईयों के लिए रामसा पीर | मुस्लिम भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर पुकारते
है वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा
रामसा पीर का विशेष स्थान है |
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बाबा रामदेव ने छुआछुत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही
लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की | डाली बाई नामक एक दलित कन्या
का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया | यही कारण
है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है | बाबा
रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक
बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी
की | यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त
कराया |
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प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ ” मारवाड़ रा परगना री
विगत ” में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है – भैरव राक्षस ने पोकरण नगर
आतंक से सुना कर दिया था लेकिन बाबा रामदेव के अद्भुत एवं दिव्य व्यक्तित्व
के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा
अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया |
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बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधी लेने के बाद कई चमत्कार
दिखाए जिन्हें लोक भाषा में परचा देना कहते है | इतिहास व लोक कथाओं में
बाबा द्वारा दिए ढेर सारे परचों का जिक्र है |
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जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की
ख्याति और उनके अलोकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति
को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए | बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने
बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही
छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों में खाते है तब बाबा
रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को
बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार
दिखाया जो सीपी जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली | इस चमत्कार (परचा)
से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार
किया |
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आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव ने
भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स.१४४२ को जीवित समाधी ले ली | आज भी बाबा रामदेव
के भक्त दूर दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है हर साल
लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी
महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता
है |
post credits:-
kusum vijaywargiya W/o Shri Umesh Vijaywargiya , Gwalior
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kusum vijaywargiya W/o Shri Umesh Vijaywargiya , Gwalior
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