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Saturday, 15 November 2014

- : मन उपदेश : - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

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- : मन उपदेश : - 
सन्तदास मन विकल है, अटक न माने काय ॥
बुरा भला देखे नहीं, जहाँ तहाँ चल जाय ॥१॥
बपड़ा तन को सन्तदास, फिरे उड़ाया मन्न ॥
जो या मन को बस करे, सो कोइ साधु जन्न ॥२॥
मन हस्ती महमन्त है, बहता है मंदमंत ॥
अंकुश दे गुरु शब्द का, फेरत है कोइ संत ॥३॥
मन चंचल था सन्तदास, मिलिया निश्चल माहिं ॥
चंचल से निश्चल भया, अब कहूँ चलता नाहिं ॥४॥
 
कोइ कोटि साधन करो, ल्यो काशी में तेग ॥
राम भजन बिन सन्तदास, मिटे न मनका वेग ॥५॥
तन कूँ धोया क्या हुआ, जो मन कूँ धोया नाहिं ॥
तन कूँ धोया बाहरा, मैल रह्या मन माहिं ॥६॥
मन की लहरया सन्तदास, ताकी लार न जाय ॥
सतगुरु का उपदेश सूँ , ता बिच रहे समाय ॥७॥
अगल बगल कूं सन्तदास, भटकत है बेकाम ॥
मिलिया चाहो मुक्तिकूँ, तो निशिदिन कहिये राम ॥८॥
क्या होता है सन्तदास, बहुता किया उपाय ॥
राम नाम सूं मन मिले, जीव बुद्धि तब जाय ॥९॥
मन लागा रहे रामसूं , तो भावै जहाँ रहो तन्न ॥
ऐसी रहणी सन्तदास, रहता है कोइ जन्न ॥१०॥ 
राम नाम कूँ छाँड के, पढ़ि है वेद पुराण ॥
जिना न पाया सन्तदास, निर्भय पद निर्वाण ॥११॥
गरक रहो गुरु ज्ञान में, राम नाम रस पीव ॥
फिर न कहावे सन्तदास, चौरासी का जीव ॥१२॥
 

आरती - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

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आरती - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

आरती
ऐसी आरति करो मेरे मन्ना । राम न विसरूं एक ही छिन्ना ॥टेर॥
देही देवल मुख दरवाजा । बणिया अगम त्रिकूटी छाजा ॥१॥
सतगुरू जी की मैं बलिजाई । निशिदिन जिह्वा अखण्ड लवलाई ॥२॥
द्वितीय ध्यान हिरदय भया बासा । परमसुख जहाँ होय प्रकाशा ॥३॥
तृतीय ध्यान नाभि मध जाई । सन्मुख भया सेवक जहाँ साँई ॥४॥
अब जाय पहुँच्या चौथी धामा । सब साधुन का सरिया कामा ॥५॥
अनहद नाद झालर झुणकारा । परम ज्योति जहँ होय उजियारा ॥६॥
कोय कोय सन्त जुगति यह जाणी । जन संतदास मुक्ति भये प्राणी ॥७॥

पद १ - राग आसा - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

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पद १ - राग आसा - स्वामी जी श्री संतदास जी महाराज

पद १ - राग आसा


संतो संतन का घर न्यारा ॥
जिस घट भीतर अमी झरत है - एक अखंडित धारा ॥टेर॥
जहाँ धर नहीं अंबर दिवस नहीं रजनी - चंद सुरज नहीं तारा ॥
जहां नहिं वेद पवन नहीं पाणी - जहाँ न यो संसारा ॥१॥
जहाँ काम न क्रोध मरे नहीं जामै - नहीं काल का सारा ॥
जत सत तपस्या सोभी नाहीं - नहीं कोई आचारा ॥२॥
सुर तैतीसूं  सो भी नाहीं - नहीं दशू अवतारा ॥
संतदास दीसत उस घर में - संतों के सिरजणहारा ॥३॥

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